Video-Historic Tribal Soldiers Conference: सोनारखापा में हुआ ऐतिहासिक आदिवासी सैनिक सम्मेलन
राजमाता फुलवा देवी कांगे की रही विशेष उपस्थिति, 8 हजार से अधिक लोग हुए शामिल
बैतूल। विगत 2 फरवरी को बैतूल जिले के ग्राम सोनारखापा में मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक संस्था और अखिल भारतीय माता दंतेवाड़िन समाज समिति के संयुक्त तत्वावधान में ऐतिहासिक आदिवासी सैनिक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस विशेष आयोजन में भूमकाल विद्रोह के नायक कंगला मांझी की धर्मपत्नी और राष्ट्रीय अध्यक्ष राजमाता फुलवा देवी कांगे मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं। कार्यक्रम में 8 हजार से अधिक लोगों की उपस्थिति ने इसे ऐतिहासिक बना दिया।
राजमाता फुलवा देवी कांगे का बैतूल आगमन सुबह 7 बजे जी.टी. एक्सप्रेस से हुआ, जहां सर्किट हाउस पर उनका भव्य स्वागत गार्ड ऑफ ऑनर के साथ किया गया। इसके बाद मांझी नगर हमलापुर स्थित जिला कार्यालय में पूजा-अर्चना और प्रेस वार्ता के बाद वे कार्यक्रम स्थल सोनारखापा पहुंचीं। कार्यक्रम में दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक कई गतिविधियां आयोजित की गईं। इसमें स्वास्थ्य शिविर और रक्तदान शिविर ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। ग्रामीणों के लिए लगाए गए इन शिविरों में बड़ी संख्या में लोग लाभान्वित हुए।
– मांझी सरकार की चौथी पुस्तक का विमोचन
इस अवसर पर कंगला मांझी सैनिक सरकार की चौथी पुस्तक का विमोचन किया गया। राजमाता फुलवा देवी कांगे ने समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक नीतियों के प्रति जागरूक किया। जिला अध्यक्ष संदीप धुर्वे ने हर घर में मांझी सैनिक सरकार के प्रतिनिधि को पहुंचाने का आश्वासन दिया। उन्होंने आदिवासी समाज के विकास और सैनिक संगठन को मजबूत करने की दिशा में काम करने का संदेश दिया। अगले दिन, 3 फरवरी को राष्ट्र पूजा और ग्रामवासियों के साथ सामाजिक चर्चा आयोजित की गई। राजमाता ने समुदाय को एकजुट होकर समाज की बेहतरी के लिए काम करने की अपील की। आयोजन स्थल पर सुरक्षा के लिए विशेष पुलिस बल तैनात किया गया था। सम्मेलन में आदिवासी किसानों, सैनिकों और गणमान्य व्यक्तियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
– कार्यक्रम में यह रहे मौजूद
इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय अध्यक्ष कंगला मांझी सरकार नई दिल्ली राजमाता फुलवादेवी कांगे, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कंगला मांझी सरकार राजकुमार कुंभदेव कांगे,।सुश्री राजकुमारी कांगे राष्ट्रीय कानूनी सलाहकार, शालिनी देवी कांगे राष्ट्रीय महिला मंडल अध्यक्ष, शशिकला सलामे इंजीनियर, राजू उइके राष्ट्रीय महासचिव अखिल भारतीय माता दंतेवाड़िन समाज समिति नई दिल्ली, श्रवण परते केंद्रीय प्रतिनिधि नई दिल्ली, वस्तु सिंह सलाम प्रदेश संचालक मध्य प्रदेश, दिनेश धुर्वे प्रदेश अध्यक्ष मध्य प्रदेश, राम प्रसाद इवने प्रदेश कोषाध्यक्ष मध्य प्रदेश, आरएन ठाकुर प्रदेश संरक्षक मध्य प्रदेश, देवश्री श्रवण मरकाम समाजसेवी बैतूल, संदीप कुमार धुर्वे जिला अध्यक्ष जयस बैतूल, जामवंत कुमरे प्रदेश संयोजक जयस मध्य प्रदेश, राजा धुर्वे इंजीनियर संरक्षक जयस बैतूल, शंकर आहके जिला अध्यक्ष आकाश संगठन बैतूल, मुन्नालाल वाडिवा जिला अध्यक्ष आदिवासी विकास परिषद बैतूल, विजय धुर्वे सरपंच ग्राम पंचायत थावड़ी उपस्थित थे।
– आदिवासी क्रांति के जननायक थे कंगला मांझी
कंगला मांझी का असली नाम हीरा सिंह देव कांगे था, उन्होंने अपनी जिंदगी आदिवासी समाज के उत्थान और उनके अधिकारों की लड़ाई को समर्पित कर दी। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में जन्मे कंगला मांझी ने कम उम्र में ही अपने पिता को खो दिया और नाना-नानी की देखरेख में बड़े हुए। महज 12 वर्ष की आयु में ही उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भूमकाल आंदोलन में हिस्सा लिया। आदिवासियों की गरीबी और शोषण से आहत होकर उन्होंने कंगला शब्द को अपनाया, जिसका अर्थ है कंगाल। उनका मानना था कि आदिवासी भारत के मूल निवासी हैं और उन्हें उनका हक मिलना चाहिए। 1951 में उन्होंने श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद आदिवासी किसान सैनिक संस्था की स्थापना की, जो आदिवासियों को संगठित करने और अन्याय के खिलाफ खड़े होने का मंच बना। अपने जीवनकाल में उन्होंने आदिवासी समाज को जागरूक और संगठित करते हुए एक क्रांति की शुरुआत की। 5 दिसंबर 1984 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी प्रेरणा आज भी आदिवासी आंदोलन का आधार बनी हुई है।
– तत्कालीन प्रधानमंत्री ने किया था राष्ट्र ध्वज से सम्मानित
कंगला मांझी जी को उनके राष्ट्रहित और जनजागृति के कार्यों के लिए भारत सरकार ने विशेष रूप से सम्मानित किया। 1951 में उन्हें समतामूलक समाज की स्थापना के लिए लाल ध्वज प्रदान किया गया। इसके बाद, 1956 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के आदेश पर मध्य प्रदेश के दुर्ग जिले के कलेक्टर ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा भेंट किया। यह सम्मान उनके द्वारा आदिवासी समाज के अधिकारों और न्याय के लिए किए गए संघर्षों का प्रतीक था। उनके संगठन में तिरंगा फहराने और झंडा वंदना गाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज भी जीवित है। यह आदिवासी समाज के प्रति उनकी निष्ठा और देशभक्ति का अद्वितीय उदाहरण है।