गोंडवाना राष्ट्रीयकरण कानून को लेकर गंभीर हुए आदिवासी संगठन

मांझी सरकार सैनिक संगठन ने बैठक आयोजित कर विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर की चर्चा

बैतूल। सुभाष चंद्र बोस जयंती के अंतर्गत श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी किसान सैनिक संगठन की बैठक विगत दिनों हमलापुर स्थित शाखा के कार्यालय में आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता संगठन के जिलाध्यक्ष नवरंग सिंह आहाके ने की। बैठक में भारत गोंडवाना राष्ट्रीयकरण कानून, संविधान में उल्लेखित आदिवासियों के हक अधिकार, सहित विभिन्न गंभीर विषयों पर चर्चा की गई।
बैठक की जानकारी देते हुए संगठन के प्रांतीय कोषाध्यक्ष श्रवण परते ने बताया कि परंपरा भारत गोंडवाना राष्ट्रीयकरण सन 1951कानून के आधार पर भारत सरकार द्वारा 3706/74 अंतर्गत निर्मित आदिवासी समाज संविधान क्रमांक 4 के तहत समाज में जाति सुधार संबंधित प्रस्ताव 26 जनवरी 1951 में पारित कर लागू कर दिया गया है, लेकिन आजादी के 75 वर्ष बाद भी मूलनिवासी आदिवासी समाज को भारत के संविधान का एक प्रतिशत भी लाभ शासन द्वारा नहीं दिया गया है, बैठक में इस मुद्दे पर गंभीर चिंतन किया गया। सरकार से आदिवासी संगठन ने सवाल किए कि आखिर उन्हें संविधान का एक प्रतिशत भी लाभ क्यों नहीं दिया, क्या कारण है, क्या हमने वोट नहीं दिया, शासन प्रशासन को इस बात का तत्काल जवाब लिखित में देना होगा।

पूंजीपतियों को मिल रहा आदिवासियों के हक का लाभ —
उन्होंने आरोप लगाया कि इस देश के संविधान का लाभ सभी गैर आदिवासी एवं विदेश के बड़े बड़े पूंजीपतियों, उद्योगपतियों को देते हुए 75 वर्ष बिता दिए गए। गरीब समाज पर किसी प्रकार का ध्यान नहीं दिया जा रहा।मूलनिवासी होते हुए भी वह उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं।शासकीय कर्मचारियों द्वारा शराब, जमीन से संबंधित मुद्दे को लेकर नकली मामले चलाए जा रहे हैं। आदिवासी समाज को आर्थिक कमजोर करते हुए विदेश के बड़े-बड़े अरबपति, उद्योगपति आदिवासियों की जमीन पर अतिक्रमण कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि संगठन का उद्देश्य गोंडवाना राष्ट्रीयकरण कानून के अंतर्गत गरीब आदिवासी समाज की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाना है। आदिवासी संगठन ने इस विषय पर चिंतन करते हुए समाज के लोगों को चेतावनी दी कि गोंडवाना राष्ट्रीयकरण कानून व सामाजिक कानून पर ध्यान नहीं दिया तो अपने ही देश में भटकते रह जाएंगे।अंतरजातीय विवाह पर जताई आपत्ति–
बैठक में अंतरजातीय विवाह पर भी आपत्ति दर्ज की गई। संगठन के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि आदिवासी समाज की युवतियों से गैर आदिवासी समाज द्वारा प्रलोभन देकर विवाह किया गया। शादी के बाद उन युवतियों के नाम से जमीन हड़प कर शासकीय योजनाओं का लाभ लिया जा रहा है। ऐसे प्रकरणों का शासन द्वारा तत्काल निरीक्षण कर बही पट्टे निरस्त किए जाने चाहिए। आदिवासी समाज की लड़की जिस समाज या जाति में गई, उसी जाति के नाम उसका जाति प्रमाण बनाना होगा, वह आदिवासी समाज की सदस्य नहीं कहलाएगी।

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