The film ‘Jungle Satyagraha’ became an example of talent and struggle: बैतूल के आदिवासी युवाओं ने सीमित संसाधनों से रच दिया इतिहास


आदिवासी नायकों के संघर्ष पर बनी फिल्म, ‘जंगल सत्याग्रह’ ने किया हर दिल को छूने का काम
‘जंगल सत्याग्रह’ को मिले सरकार का समर्थन, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने की मांग
आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की गाथा को पर्दे पर उतारने वाली फिल्म बनी प्रेरणा
डॉ प्रदीप उइके की फिल्म ‘जंगल सत्याग्रह’ बनी प्रतिभा और संघर्ष की मिसाल
बैतूल। जिले के आदिवासी युवाओं ने अपनी कड़ी मेहनत और अपार प्रतिभा के बल पर स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों की कहानी को सजीव करते हुए फिल्म ‘जंगल सत्याग्रह’ का निर्माण किया है। यह फिल्म मध्यप्रदेश के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों सरदार गंजन सिंह कोरकू, सरदार विष्णु गोंड, ठाकुर मोहकम सिंह, रामजी कोरकू और जुगरू गोंड के साहस और बलिदान की गाथा पर आधारित है। फिल्म की कहानी, स्क्रिप्ट, संवाद, गाने, संगीत, निर्देशन, निर्माण और मुख्य भूमिकाएं निभाने वाले सभी कलाकार आदिवासी समाज के हैं। ये सभी बैतूल, हरदा और होशंगाबाद जिलों के निवासी हैं।
फिल्म की पूरी शूटिंग बैतूल जिले की घोड़ाडोंगरी और मुलताई तहसील, छिंदवाड़ा जिले की जुन्नारदेव तहसील के ग्रामीण इलाकों, सतपुड़ा रेंज के घने जंगलों, पहाड़ों और नदियों के किनारे की गई है। इसमें स्थानीय लोगों ने भी अपनी भूमिकाएं निभाईं।
फिल्म का विशेष प्रीमियर शो 13 जनवरी 2025 को भोपाल स्थित मध्यप्रदेश विधानसभा के मानसरोवर सभागार में आयोजित किया गया। इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और विधायकों को भी आमंत्रित किया। फिल्म देखकर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी अनुभवी और पेशेवर निर्देशक ने इसका निर्माण किया हो। फिल्म में आदिवासी नायकों के जल, जंगल और जमीन के अधिकार के लिए किए गए संघर्ष को जीवंत किया गया है।
डॉ प्रदीप उइके बैतूल जिले के प्रतिभाशाली और शिक्षित आदिवासी युवा हैं,आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद इस फिल्म का निर्माण कर एक मिसाल पेश की है।
– जंगल सत्याग्रह’ को टैक्स फ्री किया जाए
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री मोहन यादव से मांग की है कि फिल्म ‘जंगल सत्याग्रह’ को मध्यप्रदेश में टैक्स फ्री किया जाए। फिल्म को सेंसर बोर्ड से पास कराने में हरसंभव मदद दी जाए। फिल्म निर्माण में डॉ. प्रदीप उइके द्वारा किए गए खर्च को अनुदान के रूप में स्वीकृत किया जाए। आदिवासी महानायक टंट्या मामा पर भी एक फिल्म बनाई जाए, जिसके लिए ‘जंगल सत्याग्रह’ के निर्देशक का सहयोग लिया जाए। ‘जंगल सत्याग्रह’ की ऐतिहासिक घटना को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी इस संघर्ष को भी जान सके।

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