protest against the dam: जनजातीय समुदाय ने पत्थलगड़ी कर जताया शीतलझीरी बांध का विरोध

प्रशासन को चेतावनी- बांध परियोजना को किसी भी सूरत में नहीं करेंगे स्वीकार

बैतूल। शीतलझीरी बांध परियोजना के खिलाफ जनजातीय समुदायों का विरोध और तेज हो गया है। गांधी जयंती के अवसर पर शीतलझीरी गांव के बाद अब आसपास के अन्य प्रभावित गांवों ने भी पत्थलगड़ी कर अपना सशक्त निर्णय दर्ज किया है। ग्रामीणों ने पत्थलगड़ी के जरिये यह संदेश दिया कि वे अपने जंगल, जमीन और अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार का बलिदान देने को तैयार हैं। पत्थलगड़ी के दौरान जनजातीय समुदायों ने अपने निर्णय को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया और प्रशासन को यह साफ संदेश दिया कि वे बांध परियोजना को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे।

शीतलझीरी गांव में पत्थलगड़ी अभियान के तहत ग्रामीणों ने छोटानागपुर किरायेदारी एक्ट, 1908, संथाल परगना किरायेदारी एक्ट, 1876, और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) का हवाला देते हुए अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े होने का ऐलान किया। पत्थलगड़ी के जरिये ग्रामीणों ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना उनकी सहमति के उनके क्षेत्रों में कोई भी परियोजना लागू नहीं की जा सकती है। पत्थलगड़ी पर स्पष्ट रूप से लिखा गया कि यह जनजातीय समुदाय का अंतिम निर्णय है, और इसके बाद कोई समझौता नहीं होगा। ग्रामीणों का कहना है कि शीतलझीरी बांध परियोजना से उनके गांवों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इससे उनकी जमीनें डूब जाएंगी, उनके जल, जंगल और जमीन पर उनके अधिकार भी खत्म हो जाएंगे।

आदिवासी समाजसेवी हेमंत सरियाम ने बताया जनजातीय समुदायों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कई तंत्र, विधि, और संस्थान बनाए गए हैं, जिनमें प्रमुख रूप से वनाधिकार अधिनियम, 2006 फॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006) शामिल है। हाल ही में केंद्र सरकार ने वनाधिकार अधिनियम में किए गए संशोधनों को वापस लिया है, जो जनजातीय समुदायों के लिए एक राहतभरी खबर है। सरकार ने जनजातीय समुदायों के वनों पर अधिकारों को संरक्षित करने के लिए यह कदम उठाया है, जो उनकी आजीविका और पारंपरिक जीवनशैली के लिए महत्वपूर्ण है।

क्या है पत्थलगड़ी अभियान?

सरियाम ने बताया भारतीय संविधान अनुच्छेद-51(क) के उपबन्ध के तहत संविधान का पालन करना हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य है।पत्थलगड़ी अभियान एक परंपरागत प्रक्रिया है,जिसे जनजातीय समुदाय अपनी जमीन और अधिकारों की रक्षा के लिए अपनाते हैं। यह अभियान मूल रूप से झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे जनजातीय बहुल क्षेत्रों में प्रचलित है। पत्थलगड़ी के जरिये जनजातीय लोग अपनी परंपरागत जमीन पर अपने अधिकारों का ऐलान करते हैं और प्रशासन को चेतावनी देते हैं कि उनकी जमीनें अतिक्रमण न की जाएं। शीतलझीरी गांव में पत्थलगड़ी का यह कदम जनजातीय समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए उठाया गया है। गांधी जयंती पर हुए इस आंदोलन से शीतलझीरी और उसके आसपास के गांवों में जनजातीय समुदाय की एकता और संघर्ष साफ दिखाई दे रहा है।

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