Article: कर्म के सच्चे , मन से बच्चे सचिन देवबर्मन…. 

सीए नवीन खंडेलवाल

सचिन देवबर्मन एक ऐसा नाम जिसको सोचकर, सुनकर और बोलकर सिर्फ एक ही ख्याल आता है मीठे दही जैसा संगीत, रसगुल्ले जैसा गायन, मन को मदमस्त कर देने वाली मेलोडी! है ना दोस्तों!

महानतम संगीतकार राहुल देव बर्मन के जनक….. महानतम गायक किशोर दा के मानस पिता… हर तरह के गीत गा सकते वाली अप्रतिम गायिका आशा जी के ससुर, लता जी को बहुत प्रेम देने वाले और कभी-कभी उनसे रूठ जाने वाले संगीतकार,

आम आदमी को कैसे पसंद आए गीत और उसकी जुबान पर चढ़ जाए इस बात की फिराक में सदा रहने वाले संगीत सर्जक,।अपनी धर्मपत्नी मीरा देवी के सब कुछ और भी ना जाने कितने सारे उपनाम उनके लिए हैं!

मेरी नजर में….

सच ही जिनके इन, यानी अंदर था

वह है सचिन दा! बस यह नाम ही सब कुछ कह देता है!

अंदर सच होना, सच्चाई होना, नैसर्गिकता होना, यह सब की किस्मत में नहीं होता!

सचिन दा की किस्मत में था, और हम किस्मत वाले हैं कि हमारी किस्मत में सचिन दा को सुनना लिखा है! कितना बड़ा सच है यह, सुकून देने वाला!

सच्चाई से भरा होता है संगीत, उस संगीत को अपने देश की माटी लोक गीत और मेलोडी के साथ ऐसा मिश्रण करके प्रस्तुत किया है सचिन देव बर्मन साहब ने कभी गायक के रूप में अधिकतर संगीतकार के रूप में, कि हम बस अचंभित से रह जाते हैं! नैसर्गिक चीजों में पांच तत्वों में एक है जल और जल का बड़ा भंडार होता है समुद्र।

मेलोडी का समुंदर लिए सचिन देव बर्मन जब भी मांझी एवम नाम नदी के साथ आते हैं तो अप्रतिम लगते। जैसे जीवन एक नदिया हो, मेलोडी इक नाव और सचिन देव बर्मन खुद एक पतवार लिए माझी के रूप में हमें उसे नदिया से सकुशल पार करा देते हैं!

ओ रे मांझी मेरे साजन है उस पार ….

अब इस गीत में देखिए……

परिस्थितिवश मंझधार में फंसी नायिका अपने दिल और प्रेम रूपी मांझी से अपनी विरह वेदना का जिक्र कितने हार्दिक रूप से कर रही है!

मिलन की अभिसारिता के असंभव इंतजार को नकारने की कोशिश करती हुई,,, नायिका के मन की बात को कितने प्यारे मनमोहक ढंग से सचिन देव बर्मन गाकर हमारे सामने रख देते हैं!

उनकी आवाज हमारे दिल की धड़कन बन जाती है और जो संगीत है हमारे मन में गूंजने लगता है और जो गीत के बोल है वह हमारी अपनी अभिव्यक्ति दिखने लगती है!

इसी को गायकी कहते हैं! हमारी सोचने समझने की शक्ति इस गीत के दौरान सचिन देव बर्मन की आवाज की गिरफ्त में गोया बंदिनी हो जाती है।

इसी प्रकार अच्छे से मेलोडी को जान लेने वाले सुजान सचिन दा

फिल्म सुजाता का गीत

सुन मेरे बंधु रे… सुनो मेरे मितवा

प्रणय निवेदन का गीत है, जिसमें याचना भी है स्वीकार्यता भी है, किंतु पूरी गरिमा के साथ!

फिल्म दृश्य के साथ

दूध में शक्कर की तरह मिश्रित हो जाने वाली सचिन देव बर्मन साहब की संगीतिक समझ और दृष्टि तथा उनकी गायकी, हमें ऐसा महसूस कराती है कि नायक नायिका से हम जुदा नहीं है बल्कि हम स्वयं ही वह हैं।बैकग्राउंड में सचिन दा की आवाज मीठी भी लगती, पथ प्रदर्शक भी लगती वात्सल्य से परिपूर्ण भी लगती!

अपने महान संगीतकार और गायक पुत्र पंचम दा के लिए हमेशा चुपचाप गाइड का रोल निभाने वाले सचिन दा जब

फिल्म गाइड का गीत

गाते हैं अपने प्रिय देवआनंद के लिए,,,वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहां… तब वह अपनी मधुर्तम गायकी से सुनने वाले को और देखने वाले को देवानंद रूपी कैरेक्टर के अंदर वो खुद है ऐसा महसूस करवा कर…

बड़ी आसानी से यह समझा देते हैं कि…. पुरानी यादों की तरफ मत लौट, बीते लम्हों खुशियों और सपनों को याद करके दुखी मत हो,,, वह तुझे भूल चुके तो तू भी उनको भुला दे और आगे बढ़ता चल ,आत्मनिर्भर बन, निराशा से दूर हो जा और सच्चाई को अपना ले, गले लगा ले।

यही सच्चाई जो है ना, कितनी कितनी सारी है सचिन दा में! यथा नाम तथा गुण है *सच ही इन* यानी सचिन!

वाकई….

कर्म से सच्चे,, और दिल से हमेशा बच्चे रहने वाले, सचिन दा जैसे कैरेक्टर अब थोड़े ही ना होते हैं! हाथों में चमेली के गजरे, तंबाकू वाला पान, रसगुल्ला, इन सब को दोस्त जैसा ट्रीट करने वाले किशोर दा के मानस पिता, उनको जब भी फ्री होते तो मुंबई से दूर गांव में और खेत, खलिहानों में ले जाते खेतों में मस्ती भर के होते हुए दौड़ते और गीत गाते जाते।

*होरी लाला डिंग लाला*

*डिंग फटाफट धींगरी पाका*!

जैसे प्यार भरे अलबेले बोल, गुनगुनाते! तब वह कितने,, भोले लगते होंगे, मासूम लगते होंगे, निर्दोष लगते होंगे। वह भी एकदम करीब से किशोर दा ही यह बता सकते थे और जैसा कि उन्होंने रेडियो पर बताया भी है।

जुहू बीच पर किसी दिन घूमने जाते वक्त उनकी पीठ जब सुनती है कि देखो राहुल देव बर्मन के पिताजी जा रहे हैं, तब एकदम बच्चे जैसे खुश होकर, घर जाकर अपनी कवित्री धर्मपत्नी मीरा देवी को बड़े चाव से बताते हैं इस बारे में।

अमर प्रेम कटी पतंग फिल्मों के संगीत के लिए अपने पुत्र को मन ही मन शाबाशी देने वाले सचिन दा… अपने पुत्र के संगीत में भी तो गा उठते हैं!

*डोली में बिठाई के कहार* ….

उस दिन तो, रिकॉर्डिंग स्टूडियो भी गर्व से भर उठा होगा! 184 राजाओं की त्रिपुरा रियासत के 1500 साल पुराने राजवंश के राज परिवार के राजा ईशान चंद्र के पोते और पिता नवदीप चंद्र और मां निरुपमा देवी के 9 बेटे थे सचिन देव बर्मन!

उनके दादा जी द्वारा अपने भाई को राज्य का उत्तराधिकार सौंप देने की वजह से बर्मन के पिता ने अपने आप को परिस्थिति वश कोमिला राजभवन और आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित कर लिया था और अगरतला जीवन भर न जाने की पाबंदी उन पर लग जाने के बाद उन्होंने 525 रुपया प्रति माह के गुजारे भत्ते में गुजर करते हुए स्वयं को संगीत और साहित्य में पूरी तरह से संलग्न कर लिया।

बस यहीं पर मेलोडी रूपी भवन की नींव पड़ गई! जिसके प्रमुख स्तंभ बनकर उभरे सचिन देव बर्मन ।

उनकी पढ़ाई तो घर पर होती रही लेकिन उनके पिताजी को इस बात से संतुष्टि नहीं मिली तो उन्हें पहले स्थानीय स्कूल और बाद में कोलकाता भेज दिया गया जहां से उन्होंने एमए में दाखिला लिया तो सही लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं की।।मन में कहीं बचपन से ही संगीत और गायकी की परछाई उन पर इस कदर पड़ गई थी कि अंदर ही अंदर कि उन्होंने बतौर गायक 1932 में कोलकाता रेडियो स्टेशन में नौकरी कर ली।।जहां वे प्रमुख रूप से लोकगीत और बंगाल संगीत पर कार्य करते रहे। इसी बीच उन्होंने केसीडे भीष्म देव चट्टोपाध्याय से संगीत की शिक्षा ली जिससे उनके अंदर का संगीतकार नई दिशा पाते हुए वयस्क होने लगा!

फुटबॉल और पान के शौक कलकत्ता में पनपे उन्हीं दिनों….जिसे और मजबूत किया सारंगी वादक बादल खान और सरोद वादक उस्ताद अलाउद्दीन खान से मिली तालीम ने! प्रसिद्ध बंगाली कवि काजी नज़रुल इस्लाम के सानिध्य में भी वह रहे। इन सब का इतना गहरा प्रभाव उन पर पड़ा की जिसने उन्हें आम जीवन की लोक शैली का गहरा पंडित बना दिया..और वह ता जिंदगी लोक गीतों को नैसर्गिक धुन पर ही सजाने की कला में अलौकिक रूप से पारंगत होते गए!!

और सचिन दा रचित कर गए….

100 से अधिक फिल्मों में श्रेष्ठतम मीठा और मार्मिक संगीत! 13 बंगला और 14 हिंदी फिल्मों के गीतों को अपने स्वर भी दिए गए… हमें आल्हादि होते रहने के लिए! उनकी सभी धुनों पर छाया हुआ बंगाल का जादू मुंबई संगीत निर्देशकों से कुछ अलग साबित करता रहा!

कोमिला के इस जहीन राजकुमार की राजधानी तो बांग्लादेश में चली गई। मगर उसे माटी की खुशबू सरहिंद को सरसब्ज करती रही और 31 अक्टूबर 1975 को सचिन देव बर्मन….अपने प्रिय मानस पुत्र अपने किशोर और बायोलॉजिकल बेटे पंचम…. अनमोल गायन और संगीतायन से सजे गीत

बड़ी सूनी सूनी है, जिंदगी यह जिंदगी,,

गीत को सुनकर, खुश होकर अपनी मेलिडियस खदान की जागीर यहीं हम सबके भरोसे छोड़ हम सबको अलविदा कह गए!

मेरा दिल कहता है… सचिन दा

आज भी सच्ची मेलोडी आपको पुकार कर यही कह रही है …सचिन दा।

वहां कौन है तेरा…. मुसाफिर

चले आओ

क्योंकि बड़ी सूनी सूनी है जिंदगी!

लेखक – सीए नवीन खंडेलवाल

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